अपनी पूरी जिंदगी में कभी न कभी हम ट्रेन में जरूर सफर करते हैं. ट्रेन की यात्रा हमारे लिए काफी रोचक होती है क्योंकि ये बस के मुक़ाबले काफी ज्यादा सुविधाजनक और आरामदायक होती है. इसलिए अधिकतर लोग ट्रेन में यात्रा करना मुनासिब समझते हैं. वैसे भारतीय रेल नेटवर्क दुनियाभर के बड़े नेटवर्क में से एक है. इसे संभालना काफी मुश्किल और जोखिमभरा काम है क्योंकि इसमें जरा सी गलती कई लोगों की जान ले सकती है.
हर ट्रेन को अपनी मंजिल तक पहुचाने के लिए कई सारे लोगों की मेहनत होती है तब जाकर एक ट्रेन सही सलामत अपनी मंजिल तक पहुँचती है. वैसे ट्रेन में बैठते ही हमारे दिमाग में कई तरह के सवाल आते हैं. ट्रेन के अंदर और ट्रेन के बाहर कई सारी ऐसी चीजें होती है जो हमारी समझ से बाहर होती है और हम इनके जवाबों को ढूँढने की कोशिश करते हैं.
ट्रेन के डिब्बों के रंग
जब हम ट्रेन से जाते हैं तो हमें रेल्वे स्टेशन पर अलग-अलग तरह के रंग के डिब्बे देखने को मिलते हैं. कोई डिब्बा नीला होता है, कोई लाल होता है तो कोई पीला होता है. समझ में नहीं आता की आखिर सबका काम तो एक जैसा है फिर ये डिब्बों के रंग अलग क्यों है.
वैसे अगर आप ये सोचते हैं की सभी रंग के ट्रेन के डिब्बे एक ही काम करते हैं तो ये गलत है. क्योंकि सभी डिब्बों के काम करने का तरीका एक जैसा नहीं होता. इन डिब्बों को इनके काम करने के तरीके और इनकी क्षमता के आधार पर अलग-अलग रंगों में विभाजित किया गया है. अगर आप ट्रेन में सफर करते हैं तो आपके लिए ये जानना काफी ज्यादा जरूरी है की ट्रेन के डिब्बों के रंग अलग-अलग क्यों होते हैं.
ट्रेन के डिब्बों को अलग-अलग रंग का होने के पीछे मुख्य कारण हैं इनकी विशेषता. दरअसल भारत में दो प्रकार के ट्रेन के डिब्बे बनते हैं जिनमें मुख्य रंग भी दो ही है. इन दोनों डिब्बों की विशेषता इनकी स्पीड, इनमें सुरक्षा प्रणाली है. आज तक हो सकता है की आप दोनों तरह के ट्रेन कोच में सफर कर चुके हो लेकिन आपको इनके बीच का अंतर न पता हो.
आईसीएफ़ कोच/ नीला ट्रेन का डिब्बा
आपने अभी तक सबसे ज्यादा जिस रंग में ट्रेन देखी होगी वो नीला रंग है. पिछले कई दशक से बहुत सारी ट्रेन के कोच नीले रंग के ही आ रहे हैं. इन कोच को आईसीएफ़ कहा जाता है. आईसीएफ़ का पूरा नाम इंटीग्रेटेड कोच फ़ैक्टरी (Integral Coach Factory) होता है. इंटीग्रेटेड कोच फ़ैक्टरी की स्थापना साल 1952 में चेन्नई, तमिलनाडु में की गई थी. ICF लगभग 170 प्रकार के कोच बनाती है जिसमें उस नीले रंग के कोच से लेकर कोलकाता मेट्रो के कोच शामिल है.
आप जिस नीले रंग के कोच में सफर करते हैं वो एक आईसीएफ़ कोच होता है. आईसीएफ़ फैक्टरी द्वारा ये कोच भारत ही नहीं बल्कि दूसरे देशों के लिए भी बनाए जाते हैं. इन्हें एशिया और अफ्रीका के कई देशों में एक्सपोर्ट किया जाता है.
आईसीएफ़ कोच की विशेषता
भारत में सबसे ज्यादा उपयोग होने वाले कोच है आईसीएफ़ जो अपने साथ कई विशेषता लिए हुए हैं. आईसीएफ़ यानि नीले रंग के डिब्बों की विशेषता निम्न है.
– आईसीएफ़ कोच की स्पीड 70 से 140 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. इसकी स्पीड इससे ज्यादा नहीं रख सकते.
– ये कोच मेल एक्सप्रेस या फिर सुपरफास्ट ट्रेनों में लगाए जाते हैं.
– इन कोच को जोड़ने के लिए कपलिंग का प्रयोग किया जाता है. आपने देखा होगा की नीले डिब्बे दो अलग-अलग एंगल से जुड़े होते हैं. वही कपलिंग होती है. जबकि लाल रंग के डिब्बे अलग तरह से जुड़े होते हैं.
– आईसीएफ़ में हर तरह के कोच जैसे एसी, स्लीपर, जनरल, डेमू और मेमू कोच बनाए जाते हैं.
LHB कोच/ लाल रंग के डिब्बे
ट्रेन में आपने जो दूसरे सबसे ज्यादा रंग के डिब्बे देखे वो है लाल रंग के डिब्बे. ट्रेन में ऐसा भी होता है की एक ही ट्रेन में आपने दोनों रंग के डिब्बे देखे हो या फिर दोनों रंग के डिब्बों को अलग-अलग ट्रेन में देखा हो. हालांकि एलएचबी कोच आईसीएफ़ कोच से पूरी तरह अलग होते हैं.
indian railways
एलएचबी का पूरा नाम Linke Hofmann Busch Coach है. इसे जर्मनी की Linke Hofmann Busch कंपनी द्वारा develope किया गया है. भारत में इन कोच का निर्माण रेल कोच फैक्टरी कपूरथला, में हो रहा है. शुरू में जर्मनी से LHB के 24 एसी कोच को भारत इम्पोर्ट किया गया था. भारत ने इसकी technology को ग्रहण किया और भारत में LHB कोच को इंडियन रेल्वे में शामिल कर दिया.
एलएचबी कोच की ख़ासियत
एलएचबी कोच दिखने में तो आईसीएफ़ यानि नीले रंग के डिब्बों की तरह दिखते हैं लेकिन इनके फीचर बिलकुल अलग है. ये बहुत ही अलग तरह के कोच है. आप ये मान सकते हैं की ये नीले रंग के डिब्बों का अपग्रेडेड वर्जन है. एलएचबी यानि लाल रंग के डिब्बों की ख़ासियत निम्न है.
– एलएचबी कोच की स्पीड 160 से 200 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. हालांकि इसका ट्रायल अभी तक 180 किलोमीटर प्रति घंटा पर हुआ है.
– एलएचबी कोच का उपयोग देश की सबसे तेज ट्रेनों जैसे गतिमान एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस और राजधानी एक्सप्रेस में किया जाता है.
– एलएचबी कोच आपस में जुड़े हुए होते हैं और ये किसी एंगल के जरिये नहीं जुड़े होते बल्कि एक बड़ी सी दीवार के जरिए जुड़े होते हैं.
एलएचबी वर्सेज़ आईसीएफ़ कोच
अगर आप ये सोचते हैं की दोनों कोच में से कौन से बेहतर है तो फिर सीधा सा कहना है की एलएचबी कोच ही सबसे बेहतर है. क्योंकि इसमें दुर्घटना ग्रस्त होने पर ज्यादा नुकसान नहीं होता जबकि नीले कोच में दुर्घटना होने पर सबसे ज्यादा नुकसान होता है.
दुर्घटना होने पर आमतौर पर ट्रेन पटरी से उतार जाती है और डिब्बे इधर-उधर गिर जाते हैं. नीले डिब्बों में ये एक दूसरे से टकरा कर भारी नुकसान करते हैं साथ ही ये अलग-अलग गिरने के कारण यात्रियों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है और एक्सिडेंट होने पर कई लोगों की मौत हो जाती है.
दूसरी तरह अगर लाल रंग के डिब्बे यानि एलएचबी कोच की बात करे तो इसमें दुर्घटना होने पर, गाड़ी पटरी से उतरने पर इतना नुकसान नहीं होता. इसमें अधिकतर यात्री सुरक्शित रहते हैं. क्योंकि इसमें जब ट्रेन के डिब्बे पटरी से उतरते हैं तो एक साथ ही रहते हैं एक दूसरे में टकराते नहीं. ट्रेन में सबसे ज्यादा नुकसान डिब्बों के एक दूसरे से टकराने के कारण होता है जो एलएचबी कोच में नहीं होता. इसलिए एलएचबी कोच को ज्यादा सेफ और अच्छा माना जाता है. यही कारण है की ज्यादा दूरी की गाड़ियो और ज्यादा स्पीड वाली गाड़ियों में इनका उपयोग हो रहा है. आगे चलकर ये भी हो सकता है की ये कोच हर तरह की गाड़ियों में देखने को मिलें.
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