MRF Case Study: गुब्बारे बेचते थे MRF के मालिक, ऐसे खड़ी के करोड़ों की कंपनी

MRF ये नाम आपने दो बार जरूर देखा होगा. एक तो तब जब आप बचपन में सचिन तेंदुलकर को बैटिंग करते हुए देखा करते थे तब उनके बैट पर आपको MRF Sticker दिखाई देता था. दूसरा तब जब आपने पहली बाइक खरीदी होगी और उसके टायर पर आपने MRF Tyre लिखा देगा होगा. इन दोनों जगह पर एमआरएफ़ देखकर ये कन्फ़्यूजन जरूर हुआ होगा कि एमआरएफ़ बैट बनाती है या टायर बनाती है. इस लेख में आप जान पाएंगे कि एमआरएफ़ कैसे शुरू हुई? एमआरएफ़ किसकी कंपनी है? एमआरएफ़ क्या बनाती है? MRF Full Form क्या है?

एमआरएफ़ का पूरा नाम | MRF Full Form

MRF का पूरा नाम मद्रास रबर फैक्ट्री (Madras Rubber Factory) है. ये भारत की एक मल्टीनेशनल टायर बनाने वाली कंपनी है जिसने काफी छोटे लेवल से शुरुवात की और आज दुनियाभर में अपना नाम कमा रही है. एमआरएफ़ भारत की सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी है. वहीं पूरी दुनिया में एमआरएफ़ का छठा स्थान है.

एमआरएफ़ का मालिक कौन है? | MRF Owner Name

मद्रास रबर फैक्ट्री को साल 1946 में शुरू किया गया था. तब ये कंपनी बच्चों के खेलने के गुब्बारे बनाया करती थी. इस कंपनी को के एम मेमन माप्पिलई ने शुरू किया था. इनहोने इस कंपनी को काफी छोटे लेवल से शुरू किया था. मेमन के पिता ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था जिसके चलते उनके पिता को जेल में डाल दिया गया था. परिवार को चलाने की सारी ज़िम्मेदारी के एम मेमन पर ही आ गई. इनहोने साल 1946 में मात्र 14 हजार रुपये की लागत लगाकर मद्रास रबर फैक्ट्री को शुरू किया. इस फैक्ट्री में वे अपने भाई की मदद से गुब्बारे बनाते थे और खुद उन्हें दुकानों पर बेचने जाया करते थे. वे रोजाना करीब 1000 गुब्बारे बेचते थे. और हर दिन कुछ नया करने की सोचते थे.

साल 1946 के बाद कुछ सालों तक उन्होने यही काम किया और उसके बाद साल 1951 में माप्पिलई ने कुछ पैसे और जोड़कर रिट्रेडिंग कंपाउंड बनाने की फैक्ट्री डाली. इस फैक्ट्री में वे पुराने टायरों को रिपेयर करते और फिर उन्हें बेचते. इस बिजनेस में उन्हें काफी मुनाफा हो रहा था. लेकिन उनकी कंपनी उस समय काफी छोटी पोजीशन पर होकर बड़ा मुनाफा कमा रही थी जो बड़ी टायर निर्माता कंपनी को रास नहीं आ रही थी.

उस समय भारत में टायर के क्षेत्र में एक मल्टीनेशनल कंपनी ‘डनलप’ काफी फेमस थी. अगर हम ऐसा कहें कि टायर के क्षेत्र में इस कंपनी का एकतरफा राज था तो ये कहना गलत नहीं होगा. इस कंपनी को टायर उद्योग में किसी और कंपनी की दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं थी. इसलिए डनलप ने अपने प्रतिद्वंदी एमआरएफ़ को मार्केट से बाहर निकालने की काफी कोशिश की. डनलप ने मार्केट से भी कम दाम पर टायर बेचें और एमआरएफ़ को मार्केट से बाहर निकालने की योजना बनाई लेकिन माप्पिलई भी कच्चे खिलाड़ी नहीं थे. उनके लिए ये उनकी कठिन परीक्षा का दौर था. उन्होने कड़ी मेहनत करी और अपने दामों को कम किया और मार्केट में टिके रहे.

MRF कैसे आगे बढ़ी? | How MRF Success? 

एक तरफ एमआरएफ़ कंपनी डनलप कंपनी के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही थी वहीं दूसरी ओर वो भारत की एक स्वदेशी टायर कंपनी बन रही थी जो उस समय की एक बड़ी जरूरत थी. साल 1961 में एमआरएफ़ का दूसरी टायर कंपनी मेंसफील्ड से अनुबंध हुआ जिसकी वजह से कंपनी ने तकनीकी सुधार किए और एमआरएफ़ को नैक्सट लेवल पर लाकर खड़ा किया. एमआरएफ़ के लिए अभी भी मार्केट में काफी संघर्ष था क्योंकि कई बड़ी कंपनियाँ भारत में काफी कम दामों में टायर को बेच रही थी. एमआरएफ़ ने उस समय कड़ा संघर्ष किया, अपने खर्च कम किए, यहाँ तक कि अपने विज्ञापन भी खुद ही बनाए. तब जाकर उन्होने काफी हद तक टायर की कीमत को कम रखा और मार्केट में बने रहे. साल 1987 तक एमआरएफ़ एक स्वदेशी कंपनी बन गई.

एमआरएफ़ क्या बनाती है? | MRF Best Products

आपमें से कई लोग ये भी सोचते हैं कि एमआरएफ़ का नाम तो क्रिकेट में बैट के ऊपर आता है तो क्या एमआरएफ़ बैट बनाती है. तो असल में ऐसा नहीं है. एमआरएफ़ एक गुब्बारे बनाने वाली कंपनी के रूप में शुरू हुई थी और आज ये टायर और खिलौने बनाती है. बैट पर आने वाला एमआरएफ़ का स्टिकर सिर्फ कंपनी का प्रमोशन करने का एक तरीका है जिससे लोग एमआरएफ़ के नाम को जान सके. इस तरीके में क्रिकेटर को बैट पर स्टिकर लगाने के लिए कंपनियाँ लाखों-करोड़ों रुपये देती है. वैसे एमआरएफ़ का परमोशन करने का ये तरीका शानदार था. इसकी वजह से जितने भी लोग भारत और दुनियाभर में क्रिकेट देखते थे वो एमआरएफ़ के नाम को जानने लगे थे. एमआरएफ़ की सफलता के पीछे ये भी एक बहुत बड़ा कारण है.

MRF दुनियाभर के वाहनों के लिए टायर बनाती है इस बात को तो आप जान गए लेकिन आपको ये भी जानना चाहिए कि ये कंपनी सिर्फ बाइक, बस, कार या ट्रक के टायर नहीं बनाती बल्कि भारत के फेमस लड़ाकू विमानों के टायर भी बनाती है. एमआरएफ़ भारत की एकमात्र कंपनी है जिसने लड़ाकू विमान सुखोई 30 एमकेईआई सीरीज के लड़ाकू विमानों के टायर बनाए हैं. ये कंपनी अपने उत्पादों को दुनियाभर के करीब 65 देशों में निर्यात करती है.

शेयर होल्डर्स को किया मालामाल | MRF Share Price

एमआरएफ़ ने पिछले कुछ दशकों में काफी तरक्की की है. इस कंपनी ने खुद तो मुनाफा कमाया ही है साथ ही अपने शेयरहोल्डर्स को भी काफी मुनाफा दिया है. एमआरएफ़ ने अपने आप को साल 1993 में शेयर मार्केट में लिस्ट किया था. उस दिन इसके एक शेयर का भाव 9 रुपये से शुरू हुआ था जो 11 रुपये पर बंद हुआ था. आज 27 साल के बाद इसके एक शेयर की कीमत 77,805 है. साल 2021 फरवरी इसके शेयर की कीमत 90 हजार रुपये के भी पार चली गई थी. तब से अब देखा जाए तो जिस भी व्यक्ति ने इसका शेयर साल 1993 में 11 रुपये में खरीदा था वो आज 77 हजार रुपये का मालिक है. यदि आपने 10 शेयर भी उस समय खरीदे होते तो आज आप 7.78 लाख रुपये के मालिक होते.

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एमआरएफ़ आज देश ही नहीं दुनिया की भी सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी है. पूरी दुनिया में ये छठवी सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी है. वही भारत की ये सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी है. इस कंपनी ने अर्श से फर्श तक का सफर तय किया है.

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